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for my mother (in law)

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विवाहोपरान्त जब भी कोई नई बहू घर आती है, थोड़ा हर्षित होती है, थोड़ा सा घबराती है। कितनी ही बातें कही जाती हैं कि वो कैसे सब कुछ खूब निभाती है - पर सास की कहानी एक कोने में कहीं छुप सी जाती है। वो जिसने अपना सारा जीवन इस घर को सँवारा सजाया, अपने बच्चों को दिया संस्कार और प्रेम भरा साया, पूरा समय जो था उसका - अपने बच्चों की परवरिश में लगाया - आज बेटे के हृदय में बहू के लिए स्वयं से अधिक स्थान बनाया।  सोचती है वो कि मेरे लिए भी सारी स्थिति बदल सी गयी है, नई बहू किसी अन्य वातावरण में पाली गयी है।  मेरी गृहस्थी से उसकी अभी पहचान ही नहीं है, तालमेल बिठाने की जिम्मेदारी मुझे ही तो दी गयी है।  कितना भारी है यह पद सास का,  एक दोधारी तलवार के एहसास का!  बेटे से छूटते साथ का,  बहू को समझने के प्रयास का।  समाज ने भी तो बदनाम कर दिया यह नाता,  "न जाने वो क्या सोचेगी", सोच कर दिल ठिठक जाता।  बेटे को तो जानती है पर, बहू का मन कोई कैसे पढ़ पाता?  "दूर रहूँ या पास आऊँ", इसी उधेड़बुन में मन उलझता जाता।  यदि सास माँ नहीं बन सकी तो क्या बहू बेटी बनी?  दिया उनको स्वच्छन्द स्नेह, सोच कर