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Showing posts from March, 2021

आक्रोश

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मुझे पहचानने का आधार क्या है? नीयत तो देखो, केवल आकार क्या है। मेरी आदतों से हैं तुम्हें बहुत शिकायत, मेरे फैसलों से नाखु़श ही रहती है तुम्हरी तबीयत। जो भी काम मैं करता हूँ - कैसा भी कभी भी,  क्यूँ निकालते रहते हो हमेशा उनमें कमी ही?  माना कि तुम बहुत होशियार हो,  पर नुक्स निकालने के लिए जैसे हमेशा तैयार हो। अपने ही तरीकों का बजाते रहते हो ढोल कि अगला हो ना उम्मीद, भूल जाये अपने बोल!  कोशिश कर के भी मैं तुमको खुश नहीं कर पाता हूँ इसीलिए तुम्हारी दुनिया से दूर होता जाता हूँ।  यूँ तो साथ निभाना दोतरफा़ एहसास है मत भेजो दूर उनको जो अभी तुम्हारे पास हैं अपनी होशियारी को दीवार न बनने दो!  बिना गिनाये मेरी कमियाँ - गलतियाँ, मुझे कुछ तो करने दो।  तुमको तुम्हारा तरीका़ ही चाहिये, तो ऐसा ही सही!  पर सच कहें तो हमसे ये और हो पायेगा नहीं!  सो तुम निभाओ अपने तौर तरीकों से वफादारी,  और हम दफा़ होते हैं यहाँ से, लेकर अपनी यारी!  Image courtesy:  here

अग्निपथ / trial by fire

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कितने दिन बीत गये , ऐसे ही चलते चलते,  सारा वक़्त बीत गया यूँ ही ढलते ढलते  आज सोचता हूँ कि कहाँ चूक हो गयी,  “कल कर लेंगे”, करते करते  घड़ी टूट गयी बीते वक़्त की कीमत को आज पहचाना,  जब आगे बढ़ चुका सारा ज़माना पर हार मानना हम नहीं जानते,  “कुछ नहीं हो सकता अब”, ऐसा नहीं मानते  अनुभव से सीखकर फिर से उठेंगे,  हौसले हमारे ऐसे नहीं टूटेंगे पछतावा हार की निशानी है,  पर हमने मंज़िल पा लेने की ठानी है सीधी कर अपनी रीढ़, कस कर अपनी कमर,  पुनः अपने ध्येय की ओर हो अग्रसर तू चला चल ऐ पथिक, न कर ज़माने की परवाह,  अच्छा बुरा बिना सोचे पकड़ ले अपनी राह  कल जब तू  हारा था, तब भी था अकेला,  और कल जीत में भी न मिलेगा कोई मेला  क्यूँकि तेरा यह संघर्ष खुद से है, औरों से नहीं - पहचान तेरी तुझ से ही है, हार या जीत के दौरों से नहीं Imagecredits :  https://www.freeimages.com/photo/fire-flames-1160238

the solitude of moon

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  The Solitary Moon, always the traveler of night! Many a stars twinkle, but Moon alone shows its lighted might! As the world changes around it, so it keeps adapting its flight! Building its reservoir of light during the day -  Sending soothing love at night, so pure its light!