आक्रोश
मुझे पहचानने का आधार क्या है? नीयत तो देखो, केवल आकार क्या है। मेरी आदतों से हैं तुम्हें बहुत शिकायत, मेरे फैसलों से नाखु़श ही रहती है तुम्हरी तबीयत। जो भी काम मैं करता हूँ - कैसा भी कभी भी, क्यूँ निकालते रहते हो हमेशा उनमें कमी ही? माना कि तुम बहुत होशियार हो, पर नुक्स निकालने के लिए जैसे हमेशा तैयार हो। अपने ही तरीकों का बजाते रहते हो ढोल कि अगला हो ना उम्मीद, भूल जाये अपने बोल! कोशिश कर के भी मैं तुमको खुश नहीं कर पाता हूँ इसीलिए तुम्हारी दुनिया से दूर होता जाता हूँ। यूँ तो साथ निभाना दोतरफा़ एहसास है मत भेजो दूर उनको जो अभी तुम्हारे पास हैं अपनी होशियारी को दीवार न बनने दो! बिना गिनाये मेरी कमियाँ - गलतियाँ, मुझे कुछ तो करने दो। तुमको तुम्हारा तरीका़ ही चाहिये, तो ऐसा ही सही! पर सच कहें तो हमसे ये और हो पायेगा नहीं! सो तुम निभाओ अपने तौर तरीकों से वफादारी, और हम दफा़ होते हैं यहाँ से, लेकर अपनी यारी! Image courtesy: here