मैं
मैं-बस मैं हूँ, सबसे पहले, कुछ और बनने से पहले - बस मैं ही तो हूँ! एक स्त्री, साधारण सी स्त्री, भिन्न भिन्न भूमिकाएं निभाती हुई - बस मैं एक ही तो हूँ! अपने सभी निर्णयों का स्वयं करती हूँ निर्धारण, न हूँ कोई अबला - सबल, साहसी मैं ही तो हूँ! पढ़ी लिखी, भविष्य की पीढ़ी को सुदृढ़ करती हुई - सक्षम, अनुशासित मैं ही तो हूँ! कितने साथी कितने दोस्त मिले मुझे इस संसार में - उन में से किसी न किसी की सहकर्मी, सहयोगी, सहेली मैं ही तो हूँ! अपनी भावनाओं को छुपाती नहीं, उन्हें अपनी शक्ति बनाती हुई - कोमल, भावुक मैं ही तो हूँ! सब ही का ध्यान धरती हूं, आज से मैं स्वयं का भी ध्यान धरूंगी, स्वार्थी नहीं—आत्म निर्भर, स्वावलंबी मैं ही तो हूँ! क्यूँ करूँ किसी और से अपनी तुलना? इस समस्त संसार में एक अनूठी, अनोखी मैं ही तो हूँ! मैं बस मैं हूँ —एक समान्य सी स्त्री, कितनी परतें, कितनी प्रतिभाएं, कितने रिश्ते समेटे हुए — संपूर्ण, सशक्त मैं ही तो हूँ!