safar
कितना आसान सफर तय किया था हमने अंधेरे में आरजू थी पर यकीन नहीं था, तुम होगे साथ सवेरे में कितनी सारी बातें की थी हमने, अब तो कुछ याद नहीं एक गुनगुनी सी गुदगुदाहट के अलावा बाकी कोई ज़ज्बात नहीं मजबूत सहारा मालूम देते थे तुम - गर मैं कभी गिर जो जाती आज भी तेरे वजूद से मैं हौसला हूँ पा जाती तुम्हारी गैर हाज़िर बाहों ने मुझे कितना सम्भाला है सालों से नहीं मिली तुमसे पर तुम्हारा अंदाज देखा भाला है क्या आज भी तुम को मेरी याद आती है सोचती हूँ मैं ये, जब भी रात आती है