kyun

जुदा जुदा से क्यूँ रहते हो 
कड़वा कड़वा क्यूँ कहते हो 
दुःख से घायल हो जाती हूँ मैं 
जब गुस्से से दिलों को ढहते हो

क्यूँ इतना मुझसे झगड़ते हो
बात बात पर ऐसे लड़ते हो
थक रहे हो तुम समझती हूँ मैं 
झुंझलाहट में ही बिगड़ते हो 

प्यार हम से बेइंतहा करते हो
नाराज़गी से ही बयां करते हो
कभी तो चिड़चिड़ी होती हूँ मैं
तुम मुझसे ज्यादा हद करते हो

एक ही मंज़िल है ना हमारी
एक ही ज़िंदगी है ना हमारी 
नदी के उस पार ही दिखती हूँ मैं 
पर एक ही नाव है ना हमारी


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