kab tak

कब तक, कब तक तुम्हारी अच्छी नीयत की दुहाई देकर तुम्हारे तीखी जुबान की सफाई देती रहूँगी

कब तक "मेरा भला चाहते हो" कह कह कर खुद को समझाती रहूँगी

"दिल के अच्छे हो" तो बातें इतनी नुकीली सुइयों जैसी क्यूँ चुभती हैं 

कब तक खामोशी के धागे से इस रिश्ते की रफू कराती रहूँगी 

जुबां तक आते आते तुम्हारी अच्छाई कड़वे लफ़्ज़ों में तबदील क्यूँ हो गई

सिर्फ सीरत की याद के सहारे कब तक तुमसे पहली सी मुहब्बत निभाती रहूँगी 

अरे छुरी भी एक बार में एक ही को घायल करती है पर बोली एक बार में कईयों को 

तीखे लफ़्ज़ों के वार पर कब तक मीठी यादों की मरहम लगाती रहूँगी 

अरे! ऐसी कौन सी क़यामत टूट पडी है जो कि यूँ नाराज हुए फिर रहे हो जग से 

तुम्हारी उम्मीदों के सामने कब तक अपनी कोशिशों से इम्तिहान दिलवाती रहूँगी 

अपनी फ़िकर की आढ़ में मुझे कितने ही ताने दे डालते हो 

कब तक इस उम्मीद पर कि तुम वक्त की तरह बदलोगे मैं वफा निभाती रहूँगी 



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