अक्स
आज शाम फिर कुछ घबराहट सी छाई है
लगता है दबे पाँव फिर आई तन्हाई है
यूँ तो दुनिया के हर कोने में हैं अपने दोस्त
पर इस अकेलेपन में एक अनोखी सी गहराई है
जब चाहो किसी से बात करना, तो सब मसरूफ होते हैं
पास होकर भी कुछ लोग कितने दूर होते हैं
दिल चाहे उनसे ही बातें करें, जो हमें खुशी दें, मुहब्बत दें
पर कौन मिलेगा ऐसा हर समय, लोग अपनी ही तकलीफ़ों में मशगूल होते हैं
अरे! खुशी और मुहब्बत औरों में ढूँढते हैं, कैसी नासमझी है?
अपने घर की आग गैरों पर पानी डालने से क्या कभी बुझी है?
जो नहीं कर पाओ खुद से प्यार और आप अपनी हौसलाअफजाई
तो उनको अपने बाहर ढूँढना मेरे दोस्त, ये कैसी बात बेतुकी है
खु़द में ही है ख़ुदा, समझने वाली बात इतनी ही है
जिम्मेदारी खिदमत की सबसे पहले अपनी ओर की ही ठनी है
बाँटों मुहब्बत दुनिया भर में, पर पहले करो मज़बूत खु़द को
कमज़ोर बुनियादों पर क्या कभी देखी कोई इमारत तनी है?
आप करो खुद ही से दोस्ती, समझो पहले अपने आप को ही
दुनिया के सहारे रहोगे तो ढूँढते रहोगे औरों में ही अपनी खुशी
करो यकी़न आईने का अपने, दिखेगा वही जो है सच, जो है सही
गैरों की नज़रों से अपना अक्स बनाने का कोई मतलब नहीं
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