ये भी प्यार!!


एक मैं और एक तुम - और कुछ नहीं है दरमियाँ
बस मेरा हरा भरा सा दामन, तेरा ख़ामोश सा आसमाँ

बातें बेकार सी लगती हैं, नज़र से सब होता है बयाँ
क्या सोचता है तू यूँ गुमसुम, क्यूँ दिखती हूँ मैं अंजान

सदियों पुराना है अपना रिश्ता, गवाह है ये सारा जहाँ
क्या कहें- कोई लफ्ज़ नहीं मिलते- न मिलती है कहीं कोई ज़ुबाँ

ऐसा अनोखा प्यार है अपना, इसको समझना नहीं आसाँ
मिलते कभी नहीं पर हैं हमेशा साथ, मोहब्बत का ऐसा ही है गुमाँ

कि तेरी एक ही झलक से खिल उठती हूँ मैं, 
चहक सा उठता है ये जग जो था बियाबान 
मुझे देखने को ही तो हर रोज़ तू भी, 
चमकता है, इठलाता है, दिखाता है अपनी शान

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