had

प्यार की हद ये है कि कहाँ मैं खत्म और कहाँ तू शुरू होता है 
दर्द की इन्तहा ये है कि अब कुछ महसूस ही नहीं होता है 

बग़ावत ज़माने से तो कर ली बिना नतीजों की परवाह किये
मालूम क्या था कि तू भी ज़माने से कहाँ ज़ुदा होता है 

ज़ख़्म और ज़िल्लत के दरमियाँ का फ़ासला कब का खो गया 
अब तो बस तू ही तू मेरा शौक, मेरा वजूद, मेरा मरकज़ मालूम होता है 



Comments

Popular posts from this blog

भजन

woh