रावण दहन / आत्म चिन्तन


विजय दशमी का पर्व है, वर्षों से हम कर रहे हैं रावण दहन
परन्तु क्या हम करना भूल गये हैं तनिक भी आत्म-चिन्तन?
कैसे स्वीकारा कि मात्र अवगुणों का भण्डार था वो ज्ञानी ब्राह्मण?
या जलाते जलाते हम करना भूल गये उसके सद्गुणों का स्मरण!

अखण्ड भक्ति थी उसकी अपने आराध्य शिव शम्भू पर 
पाया वर उसने कि होगा वो शिवभक्त अनूठा समस्त भू पर! 
तो फिर था उसमें साहस, धैर्य व श्रद्धा कि कर सके वो तप, 
किन्तु जब आया राम का समय तो फिर कहाँ भटक गया वो भक्त?

संगीतज्ञ व कवि था वो - संस्कृत का महाज्ञानी!
कितने ही वाद्य व काव्य रच डाले, कहाँ मिलेगा उसका सानी। 
तो संवेदनशीलता का तो न होगा अभाव जब लिखी उसने कोई कविता। 
फिर कैसे पाया दुःसाहस जो हर ली उसने निर्मल, निश्छल, सती सीता?

प्रजा भी तो उसकी थी सम्पन्न - प्रसन्न, नहीं था वो कोई नृप अत्याचारी, 
अपनी बहन के सम्मान के लिए लड़ पड़ा वो, उसकी बहन भी तो थी एक नारी! 
फिर कमी क्या रह गयी उसकी कथनी में, उसकी करनी में -
कि याद किया जाता है वो समय पर्यन्त पापियों, दुराचारियों की श्रेणी में!

कुछ तो था स्वभाव से वह लाचार - अन्ततः रावण था तो एक असुर, 
पराक्रम था, उग्रता थी, कला थी, भक्ति थी, वीरता थी उसमें प्रचुर! 
कारण वो बना अपने कुल के नाश का या फिर कुलनाशक था विभीषण?
जिसने भाई का मृत्यु - भेद खोलने में न गँवाया एक भी क्षण!

युद्ध काल में राम का बन पुरोहित कर ली उसने अपनी पराजय तय। 
रावण था ऐसा शत्रु जो बन आचार्य पहुँचा यज्ञ में सीता सहित पूर्णतः अभय। 
राम भी जिसका करते थे आदर - तो होंगे उसमें कुछ ऐसे गुण, 
कि मृत्यु शैय्या पर सीख लेने राम ने रावण के पास भेजे लक्ष्मण। 

कुछ तो कारण है कि इतनी विशेषताओं के बाद भी जलता है रावण! 
देखा केवल अपना अभिमानी स्वार्थ - बलि हो गये उसके परिजन! 
न सुनी विवेक कि उसने, न ही लिया ज्ञान से मार्गदर्शन, 
यूँ अपनी नियति का उसने स्वयं कर लिया परिवर्तन। 

द्योतक है दशहरा श्री राम की विजय का - 
धर्म, मर्यादा, परहित, त्याग के नाम की विजय का। 
ऐसा नहीं कि दुःख के पात्र नहीं बने श्री राम, 
परन्तु मर्यादा की रक्षा हेतु ही किये उन्होंने सारे काम। 

श्री राम ने विवेकसहित किया मर्यादा का पालन सदा, 
और रावण ने ज्ञान की राह चुनी यदा कदा। 
जलता तो है रावण पर मरता नहीं - बात यह गुनने की है। 
विवेक को जगाकर त्यागें रावण - बारी राम को चुनने की है। 

दोनों ही थे विद्वान, शूरवीर व घोर शिव भक्त, 
हाय! अविवेकता के कारण हुआ रावण का अन्त! 
बिरले ही कोई मर्यादा की राह पर अपना सर्वस्व गँवातें हैं-
इसीलिये तो प्रभु राम घर - घर में पूजे जाते हैं! 

Comments

Popular posts from this blog

भजन

woh

had