कुछ देर

कुछ देर के लिए ही सही, कमज़ोर पड़ना चाहती हूँ मैं,
ये बोझ कहीं रख देना चाहती हूँ मैं।

समझो ना मेरे अन्दर के एहसासों को, जज़्बातों को, 
कुछ इशारे तो पढ़ लो, सुनो ना कुछ अनकही बातों को।

बरसों से झगड़ रही हूँ इस ज़माने से, 
कभी बेवजह, कहीं किसी जायज बहाने से-

तुम्हारे मज़बूत कंधों का आसरा ढूँढती हूँ,
कुछ देर को ही सही, एक सहारा ढूँढती हूँ।

कुछ देर के लिए ही सही, कमज़ोर पड़ना चाहती हूँ मैं,
ये बोझ कहीं रख देना चाहती हूँ मैं।

समझो ना मेरे अन्दर के एहसासों को, जज़्बातों को, 
कुछ इशारे तो पढ़ लो, सुनो ना कुछ अनकही बातों को।

भर लो मुझे अपने आगोश में, जकड़ लो कसकर,
कि मिट जाये ये बेचैनी, लौट आये सुकून - बस पल भर।

थक गयी हूँ अपनी हिम्मत दिखाते हुए,
अपनी परेशानियाँ खुद से भी छुपाते हुए।

कुछ देर के लिए ही सही, कमज़ोर पड़ना चाहती हूँ मैं,
ये बोझ कहीं रख देना चाहती हूँ मैं।

समझो ना मेरे अन्दर के एहसासों को, जज़्बातों को, 
कुछ इशारे तो पढ़ लो, सुनो ना कुछ अनकही बातों को।


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