करारे थप्पड़

कहते हो जब तुम कोई बात, पहले एक प्यार सा था झलकता
पर अब शिकयतों और चिढ़चिढ़ाहट भरा वार है लगता
जब मिलकर कियें हैं कुछ फैसले, फ़िर क्यूँ सोचते हो कि हो तुम अकेले
जिसके हिस्से में हैं जैसे सारी तकलीफ़ें, परेशानियाँ और झमेले

समझ रहा हूँ कि हो परेशान तुम
बात कोई बन रही नहीं, रह रहे हो गुमसुम
आवाज़ तुम्हारी है पर बोल नहीं तुम्हारे 
जो पहुँचाते हैं चोट हमको, ऐसे खामोश़ थप्पड़ करारे

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