कर्मयोगी
नहीं है तुझमें कोई विषाद, नहीं किया तूने कोई अपराध।
फिर क्यूँ तू घबराता है, धीरज सा खोता जाता है।
क्या तुझको समझ नहीं आता है, या तू देखना ही नहीं चाहता है?
समय बड़ा बलवान है, काल सा कौन महान है!
सारे फल समय के अधीन हैं, हम मात्र कर्मों पर ही आसीन हैं।
कर्म किया है तो कुछ फल निश्चित है, फल तो कर्मों पर ही आश्रित हैं।
तू व्यर्थ में होता चिन्तित है, तू क्या पूर्णतः ही विशवासरहित है?
समय तो तेरे हाथ नहीं, भाग्य कभी तो है पर कभी साथ नहीं,
पर डरने वाली कोई बात नहीं, कर्म निष्ठा से बड़ी कोई जात नहीं
अरे! बनना है तो कर्मयोगी बन, कर्म कर - ना कर खाली वचन!
कर्मों से बड़ा ना कोई धन, मनुज का मात्र कर्म पर ही नियंत्रण!
कर्मों से ही बड़ा होता है मनुष्य, बादल सकता है वो अपना भविष्य।
भाग्य का लेखा भी होता है नतमस्तक, कार्यशील रहे मनुष्य जब तक।
जब भी मनुज परिणामों से आसक्त हुआ, कर्म छोड़ मात्र फल का भक्त हुआ,
तब ही मोह व भय करते हैं घर, मन का ध्यान भटकते इधर उधर।
सारी युक्तियाँ समझ में आती हैं, सारे पाखण्ड सुहाते हैं,
जब हम परिणाम का ध्यान धर कर कर्मों से जी चुराते हैं।
इसीलिए हे मनुष्य, सुन देकर कान, अपने कर्तव्य की कर पहचान!
समय माँगता है कर्मों का बलिदान, पुरुषार्थ ही मानवता की है पहचान।
हरि का कर नित ध्यान, बन थोड़ा सा धैर्यवान,
कर्म पथ पर चल अपना सीना तान, समय और भाग्य से बनेगा महान
यही है संपूर्ण गीता का ज्ञान, यही है संपूर्ण गीता का ज्ञान!
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