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मोड़

एक मुड़ती हुई सड़क थी, किनारे एक पेड़ था,  फैला हुआ समंदर, किनारे रेत का ढेर था,  मैं भी थी वहीँ कहीं, किसी टेहनी पर चींटी सी -  या लहरों सी खेलती हुई, या सब मेरे ख्वाबों का खेल था!  सोचती हूं कि उस मोड़ के आगे क्या और दुनिया बाकी है?  फिर याद आता है कि ये पेड़, ये समंदर, सभी तो मेरे साथी हैं,  क्या करूँ हिम्मत कुछ नया ढूँढने की, मोड़ से आगे बढ़ने की?  या रोक लूँ यहीं खुद को, मेरी उम्र के लिए यही काफी हैं!  रुई से बादल तो इशारा कर रहे हैं कि हिम्मत करो, आगे बढ़ो!  पुराने आराम की आदत है तुम्हें, पर नए हालातों से मत डरो! कुछ दिन बीतते ही नए दोस्त बना लोगे तुम, फिर वही आराम पा लोगे तुम, आसमाँ को देखते रहना, ये हर मोड़ पर मिलेगा, बस तुम आगे बढ़ो!

woh

किसी और का नहीं अपना है वो एक सुन्दर सा मेरा सपना है वो  मेरे तरीके से प्यार निभाता है वो  जो सोचती हूँ मैं, कर जाता है वो  किसी और को देखे तक न वो सिवा मेरे कुछ और सोचे तक न वो  इसीलिए किसी और का नहीं, अपना है वो  एक सुन्दर सा मेरा सपना है वो फूल और तोहफों के ढेर लगा दे वो  जो मांगू मैं, तुरंत मुझे दिला दे वो  जैसे मैं चाहूँ वैसे मुझे प्यार करे वो सब कुछ अपना मुझपर निसार करे वो  इसीलिए किसी और का नहीं, अपना है वो  एक सुन्दर सा मेरा सपना है वो फ़िल्मों के हीरो को भी हरा दे वो  हाथ में चाँद, माँग में तारे सजा दे वो  मेरे लिए पूरी दुनिया से लड़ जाता वो  अरे मेरे लिए क्या कुछ नहीं कर जाता वो  इसीलिए किसी और का नहीं, अपना है वो  एक सुन्दर सा मेरा सपना है वो   रोज की भाग दौड़ से हट के मिलता है वो  मेरे सिवा किसी को भी नहीं दिखता है वो  असल ज़िंदगी में क्या होता है वो?  शायद सपनों ही में मिलता है वो  इसीलिए किसी और का नहीं, अपना है वो  एक सुन्दर सा मेरा सपना है वो