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Showing posts from February, 2023

गुरु पूर्णिमा

करती हूँ अर्पण, सादर, सप्रेम नमन - प्रफुल्लित सी नतमस्तक हूँ, हैं सम्मुख गुरु चरण।  प्रथम प्रणाम जीवन के प्रथम गुरूओं को, अर्पित है सप्रेम नमस्कार, आदरणीय मातु-पितु को। तत्पश्चात करती हूँ आह्वान उन सभी शिक्षकों का, जिन्होंने दिया ज्ञान, बताया सही अर्थ इस जीवन का। मैंने सीखा कि उचित क्या है और क्या अनुचित,  व बनी समर्थ कि चुन पाऊँ वो विकल्प जिसमें हो सर्वहित। अभिवादन है उनका भी जिन्होंने कराया मुझसे संघर्ष,  अग्निपथ पर ही चलकर होगा मेरा उद्भव उत्कर्ष।  वो ज्ञान भी है अनमोल जो प्राप्त हुआ जब पायी हार,  क्यूँकि हार में ही छुपी हुई है रहस्यमयी जयजयकार!  यही मार्गदर्शन मिला मुझे अपने जीवन में,  सदा भरो हृदय में साहस और आशा अपने मन में।  गुरु पूर्णिमा का यह पावन पर्व, अनमोल है यह अवसर -  करूँ प्रकट मैं अनंत आभार, धरकर ध्यान में सभी गुरुवर! 

कुछ देर

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कुछ देर के लिए ही सही, कमज़ोर पड़ना चाहती हूँ मैं, ये बोझ कहीं रख देना चाहती हूँ मैं। समझो ना मेरे अन्दर के एहसासों को, जज़्बातों को,  कुछ इशारे तो पढ़ लो, सुनो ना कुछ अनकही बातों को। बरसों से झगड़ रही हूँ इस ज़माने से,  कभी बेवजह, कहीं किसी जायज बहाने से- तुम्हारे मज़बूत कंधों का आसरा ढूँढती हूँ, कुछ देर को ही सही, एक सहारा ढूँढती हूँ। कुछ देर के लिए ही सही, कमज़ोर पड़ना चाहती हूँ मैं, ये बोझ कहीं रख देना चाहती हूँ मैं। समझो ना मेरे अन्दर के एहसासों को, जज़्बातों को,  कुछ इशारे तो पढ़ लो, सुनो ना कुछ अनकही बातों को। भर लो मुझे अपने आगोश में, जकड़ लो कसकर, कि मिट जाये ये बेचैनी, लौट आये सुकून - बस पल भर। थक गयी हूँ अपनी हिम्मत दिखाते हुए, अपनी परेशानियाँ खुद से भी छुपाते हुए। कुछ देर के लिए ही सही, कमज़ोर पड़ना चाहती हूँ मैं, ये बोझ कहीं रख देना चाहती हूँ मैं। समझो ना मेरे अन्दर के एहसासों को, जज़्बातों को,  कुछ इशारे तो पढ़ लो, सुनो ना कुछ अनकही बातों को।

कर्मयोगी

नहीं है तुझमें कोई विषाद, नहीं किया तूने कोई अपराध। फिर क्यूँ तू घबराता है, धीरज सा खोता जाता है।  क्या तुझको समझ नहीं आता है, या तू देखना ही नहीं चाहता है? समय बड़ा बलवान है, काल सा कौन महान है! सारे फल समय के अधीन हैं, हम मात्र कर्मों पर ही आसीन हैं।  कर्म किया है तो कुछ फल निश्चित है, फल तो कर्मों पर ही आश्रित हैं।  तू व्यर्थ में होता चिन्तित है, तू क्या पूर्णतः ही विशवासरहित है?  समय तो तेरे हाथ नहीं, भाग्य कभी तो है पर कभी साथ नहीं,  पर डरने वाली कोई बात नहीं, कर्म निष्ठा से बड़ी कोई जात नहीं  अरे! बनना है तो कर्मयोगी बन, कर्म कर - ना कर खाली वचन!  कर्मों से बड़ा ना कोई धन, मनुज का मात्र कर्म पर ही नियंत्रण!  कर्मों से ही बड़ा होता है मनुष्य, बादल सकता है वो अपना भविष्य।  भाग्य का लेखा भी होता है नतमस्तक, कार्यशील रहे मनुष्य जब तक।  जब भी मनुज परिणामों से आसक्त हुआ, कर्म छोड़ मात्र फल का भक्त हुआ,  तब ही मोह व भय करते हैं घर, मन का ध्यान भटकते इधर उधर।  सारी युक्तियाँ समझ में आती हैं, सारे पाखण्ड सुहाते हैं,  जब हम परिणाम का ध्यान धर कर कर्मों से जी चुराते हैं।  इसीलिए हे मनुष्य,

करारे थप्पड़

कहते हो जब तुम कोई बात, पहले एक प्यार सा था झलकता पर अब शिकयतों और चिढ़चिढ़ाहट भरा वार है लगता जब मिलकर कियें हैं कुछ फैसले, फ़िर क्यूँ सोचते हो कि हो तुम अकेले जिसके हिस्से में हैं जैसे सारी तकलीफ़ें, परेशानियाँ और झमेले समझ रहा हूँ कि हो परेशान तुम बात कोई बन रही नहीं, रह रहे हो गुमसुम आवाज़ तुम्हारी है पर बोल नहीं तुम्हारे  जो पहुँचाते हैं चोट हमको, ऐसे खामोश़ थप्पड़ करारे

ऐसे ही कभी

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ऐसे ही बैठे बैठे, यूँ ही कभी, जब आंखें नम हो आती हैं सोचती हूँ - कि थक गई हूँ या फिर कुछ दर्द सा उभर रहा है!  किसी ने कुछ कहा भी नहीं, किसी ने कुछ किया भी नहीं -  तब फिर ऐसा क्या है जो जी को यूँ अखर रहा है?  धुंधली धुंधली सी ठेस है शायद, मन की गहरी परतों से झांकती हुयी,  छुपता छुपाता सा वाक्या कोई यादों की दलदल से निकल रहा है।  पूरा किस्सा तो याद नहीं आता अब, पर बात होगी बड़ी ही कोई,  कि आज भी लगता है, जैसे मेरे हाथ से तेरा हाथ फिसल रहा है!  Image credit: https://images.app.goo.gl/5spBHQyjDtaAcZBg6 

Tears

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I am having such an insane desire to cry tonight All the pent up feelings are resurfacing, every single slight Boiling just beneath my eyelids, fighting to be let free My tears await permission to flow noisily or silently The emotional baggage is now turning to an overload All that has been stored inside, for so long, is needing to be told Speaking out, or expressing without words, even through tears  Just so I could rid myself of all these feelings, complexes and fears Why do you increasingly speak with me so derogatingly You just choose the worst time to behave with me disparagingly As if I don't have brains of my own or I am an imbecile I often keep quiet to maintain peace, it's not because I am docile  I don't want to engage in a war of words because I love us so much But my patience is wearing thin, please don't make it further stretch I won't talk anymore or explain anything if I go away from you Because all this while that is probably what you wan