आफताब

नींव तो खुद ही की चाहती मजबूती है
हिम्मत अन्दर ही से तो टूटती है 
अब भी सुधारों अपने मन को
ज़िंदगी की डोर कमज़ोर मन से ही छूटती है 

आफताब खुद ही को जलाकर जहां रौशन करता है
ये बारूद अपने अन्दर ही तो भरता है
जो इंतज़ार करता किसी तारे का, या चाँद का
तो क्या वो सब कर पाता, जो सब वो करता है?

अपने आसमान के, अपने जहान के हम ही आफताब हैं
न ढूँढें कहीं और अपनी कदर, हर चीज़ में हम कामयाब हैं
क्या करेंगें सहारा पाकर, हम बने हैं सहारा देने के लिये
जलना हमारी फितरत है, किस्मत है- रौशनी देने में हम लाजवाब हैं 

-Kirti

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