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Showing posts from 2023

भजन

लाज रखो गिरिधारी मेरी लाज रखो गिरिधारी  जो मैं किसी से कह ना पाऊँ  तुमसे वो मैं कैसे छुपाऊँ मैं कैसी दुखियारी मेरी लाज रखो गिरिधारी पीड़ा ये कैसे सह जाऊँ अपनी व्यथा क्या मैं पी जाऊँ कहो ना मदन मुरारी मेरी लाज रखो गिरिधारी बड़े सब ही मौन खड़े हैं  साथी सब ही मुहँ फेरे हैं  बस तुम हो आस हमारी मेरी लाज रखो गिरिधारी दुष्टों को अब दण्डित कर दो  इनके मान को खण्डित कर दो  सुन लो अरज हमारी मेरी लाज रखो गिरिधारी नित दिन तेरा भजन करूँगी कैसे मिलूँ ये मनन करूँगी  ऊँची है तेरी अटारी मेरी लाज रखो गिरिधारी द्वार तुम्हारे आन पड़ी हूँ  हाथ जोड़े देखो खड़ी हूँ  देर न कर बनवारी मेरी लाज रखो गिरिधारी 

gulmohar गुलमोहर की सीख

आज सवेरे सवेरे अपने रस्ते पे एक गुलमोहर का फूल पड़ा मिला एक पल को मैं रुक गयी यूँ सोचते  इतना खूबसूरत फूल, कहीं मैंने जो इसे कुचल दिया? इतने में आवाज आयी,  थोड़ी लाल पीली, ज़रा मीठी सी क्या सोच रहे हो मेरे दोस्त,  किन उलझनों में गुम हो गए  मेरी सुंदरता सिर्फ पेड़ पर ही थी  मैं तो अब अपना काम कर चला  सारी ज़िंदगी इस पेड़ से चिपक के बिता दी और आखिरी वक्त में ये नाता भी टूट चला पर अब मुझे न दर्द है न खौफ है कि आगे क्या होगा  रूँद जाना है मुझे या फिर गल जाना है यही पल शायद मेरा आख़िरी मुक़ाम होगा  मैंने भी तो तेरी तरह इस मिट्टी में मिल जाना है 

The loving tree

 Today morning I came across an old tree Standing proud with its wounds for all to see Wanting to retell its glorious, valorious story Full of wishes, smiles, crossing paths, even misery It invites us to sit and listen to its tale openly Shall we try to find some lesson in it, maybe The tree speaks of its love given unconditionally And to keep giving if one wants to live fully Not caring what the passers by do or say It keeps giving something of itself everyday Becasue seasons come and go, one after another But true joy of unconditional love stays forever

shivratri 2023

शिवरात्रि यूँ तो हर महीने ही आती है पर आज की रात महाशिवरात्रि है आज कुछ ऐसा संयोग है गगन में कि भक्त गण सब रहते हैं मगन से  है ना कोई भांग ना ही कोई नशा भोले बाबा की भक्ति के सिवा  भजन, कीर्तन, मन्त्रों का जाप करें  हवन, पूजन, जैसे चाहें अर्चना आप करें  माता पार्वती शिव जी की शक्ति हैं माता पार्वती शिव जी की प्रीति है  अपर्णा ने किया अपार तप व त्याग  तभी तो मिला उन्हें अखंड सुहाग  गौरी शंकर का रूप धर कर भगवान  समस्त संसार को देते हैं गृहस्थी का ज्ञान परस्पर आदर व व्यक्तिगत सीमा का रहे ध्यान  यूं ही प्रेम से जीवन व्यतीत करें, होगा कल्याण 

घुटन

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एक अजब घुटन सी होती है, आजकल अपनों के बीच भी मायूसी सी छा जाती है, आजकल सपनों के बीच भी न जाने कैसी कैफ़ियत से जूझ रहा है ये दिल बेचारा तारीख़ तो बदलती है पर हालत नहीं बदलती महीनों के बीच भी  बस इक सुकून ही तो ढूँढती है मेरी रूह दर ब दर- मिल जाता है कोई हमदम, कोई हमराज़, कोई हमसफ़र कुछ देर को ही सही, दिल के बोझ में उतार चढ़ाव तो आता है,  अलबत्ता सुकून की तलाश मुल्तवी हो जाती है इस कदर जब तन्हाई के बादल घेर लेतें हैं मुझे फिर कभी दुबारा   सुकून की तलाश में निकल चलती हूँ मैं फिर से मेरे यारा यूँ कि सुकून या साथ, कुछ तो मिल सकता है इस राह में  वर्ना तो फक्त़ मायूसी है अपनी और है अपना घुटन का दायरा  Image credit : https://images.app.goo.gl/1SGwaKGE5fUgnvvR6

had

प्यार की हद ये है कि कहाँ मैं खत्म और कहाँ तू शुरू होता है  दर्द की इन्तहा ये है कि अब कुछ महसूस ही नहीं होता है  बग़ावत ज़माने से तो कर ली बिना नतीजों की परवाह किये मालूम क्या था कि तू भी ज़माने से कहाँ ज़ुदा होता है  ज़ख़्म और ज़िल्लत के दरमियाँ का फ़ासला कब का खो गया  अब तो बस तू ही तू मेरा शौक, मेरा वजूद, मेरा मरकज़ मालूम होता है 

मैं

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मैं-बस मैं हूँ, सबसे पहले, कुछ और बनने से पहले - बस मैं ही तो हूँ!  एक स्त्री, साधारण सी स्त्री, भिन्न भिन्न भूमिकाएं निभाती हुई - बस मैं एक ही तो हूँ!  अपने सभी निर्णयों का स्वयं करती हूँ निर्धारण, न हूँ कोई अबला - सबल, साहसी मैं ही तो हूँ!  पढ़ी लिखी, भविष्य की पीढ़ी को सुदृढ़ करती हुई - सक्षम, अनुशासित मैं ही तो हूँ!  कितने साथी कितने दोस्त मिले मुझे इस संसार में -  उन में से किसी न किसी की सहकर्मी, सहयोगी, सहेली मैं ही तो हूँ! अपनी भावनाओं को छुपाती नहीं, उन्हें अपनी शक्ति बनाती हुई - कोमल, भावुक मैं ही तो हूँ! सब ही का ध्यान धरती हूं, आज से मैं स्वयं का भी ध्यान धरूंगी, स्वार्थी नहीं—आत्म निर्भर, स्वावलंबी मैं ही तो हूँ! क्यूँ करूँ किसी और से अपनी तुलना? इस समस्त संसार में एक अनूठी, अनोखी मैं ही तो हूँ! मैं बस मैं हूँ —एक समान्य सी स्त्री, कितनी परतें, कितनी प्रतिभाएं, कितने रिश्ते समेटे हुए — संपूर्ण, सशक्त मैं ही तो हूँ! 

किसी के जाने से

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किसी के चले जाने से ये जहाँ नहीं रुकता है जिसका जहाँ लुट गया, वो भी कहाँ वहाँ रुकता है  वक्त की छोटी सी बूँद में क्या से क्या हो जाता है साँसों का सिलसिला कब सिर्फ आखिरी कतरा हो जाता है  मालूम ही नहीं पड़ता कि किसका जहाँ लुटता है  टीस दर्द की बस वो जानता है जिसका जहाँ लुटता है  किसी के चले जाने से ये जहाँ नहीं रुकता है जिसका जहाँ लुट गया, वो भी कहाँ वहाँ रुकता है तमाम रस्मों को निभाने में कितनी घड़ियाँ बिताई तेरी जुदाई अभी तलक समझ ही नहीं आयी  समझ बूझ अक्ल से कोसों दूर है कि बिन तेरे मेरा दम घुटता है दर्द लहू बनकर रगों में दौड़ रहा है कि मेरा सारा जहाँ लुटता है  किसी के चले जाने से ये जहाँ नहीं रुकता है जिसका जहाँ लुट गया, वो भी कहाँ वहाँ रुकता है जाने वाले की याद करूँ या अपने अकेलेपन का ग़म करूँ  औरों से आँसू छिपा लूँ या बोलकर अपना दर्द कम करूँ  आगे की सोचो, कहते हैं वो जिनका अपना क्या लुटता है  यकीं नहीं होता कि तेरे जाने से ये जहाँ नहीं रुकता है किसी के चले जाने से ये जहाँ नहीं रुकता है जिसका जहाँ लुट गया, वो भी कहाँ वहाँ रुकता है Image credit : https://images.app.goo.gl

क्यूँ मायूसी

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क्यूँ ऐसे खामोश बैठे हो, किस लिए हो यूँ गुमसुम लगता है जैसे कि खुद से ही कुछ रूठ गए हो तुम ग़र कोई चाहत पूरी नहीं हुई तो यूँ परेशान हो गए  सिर्फ़ अपनी ही नहीं मेरी तरफ से भी टूट गए हो तुम  वक्त का पहिया रुकता नहीं - अपनी रफ़्तार से चलता रहता है  मुश्किलों के दौर ज़रा खिंच क्या गए, मानों थक गए हो तुम  हौसला रखो, मेहनत करो, कामयाबी का भी दौर आएगा  क्यूँ नाउम्मीदियों के भँवर में यूँ उलझ गए हो तुम  शुक्रिया करो ऊपर वाले का कि बस इतना ही इम्तिहान लिया है  जब हो जाओ कामयाब फिर से, तो करना शुक्रिया कि उठ गए हो तुम  Image courtesy : https://images.app.goo.gl/hD3pnzUmiU29MnMb7  

गुरु पूर्णिमा

करती हूँ अर्पण, सादर, सप्रेम नमन - प्रफुल्लित सी नतमस्तक हूँ, हैं सम्मुख गुरु चरण।  प्रथम प्रणाम जीवन के प्रथम गुरूओं को, अर्पित है सप्रेम नमस्कार, आदरणीय मातु-पितु को। तत्पश्चात करती हूँ आह्वान उन सभी शिक्षकों का, जिन्होंने दिया ज्ञान, बताया सही अर्थ इस जीवन का। मैंने सीखा कि उचित क्या है और क्या अनुचित,  व बनी समर्थ कि चुन पाऊँ वो विकल्प जिसमें हो सर्वहित। अभिवादन है उनका भी जिन्होंने कराया मुझसे संघर्ष,  अग्निपथ पर ही चलकर होगा मेरा उद्भव उत्कर्ष।  वो ज्ञान भी है अनमोल जो प्राप्त हुआ जब पायी हार,  क्यूँकि हार में ही छुपी हुई है रहस्यमयी जयजयकार!  यही मार्गदर्शन मिला मुझे अपने जीवन में,  सदा भरो हृदय में साहस और आशा अपने मन में।  गुरु पूर्णिमा का यह पावन पर्व, अनमोल है यह अवसर -  करूँ प्रकट मैं अनंत आभार, धरकर ध्यान में सभी गुरुवर! 

कुछ देर

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कुछ देर के लिए ही सही, कमज़ोर पड़ना चाहती हूँ मैं, ये बोझ कहीं रख देना चाहती हूँ मैं। समझो ना मेरे अन्दर के एहसासों को, जज़्बातों को,  कुछ इशारे तो पढ़ लो, सुनो ना कुछ अनकही बातों को। बरसों से झगड़ रही हूँ इस ज़माने से,  कभी बेवजह, कहीं किसी जायज बहाने से- तुम्हारे मज़बूत कंधों का आसरा ढूँढती हूँ, कुछ देर को ही सही, एक सहारा ढूँढती हूँ। कुछ देर के लिए ही सही, कमज़ोर पड़ना चाहती हूँ मैं, ये बोझ कहीं रख देना चाहती हूँ मैं। समझो ना मेरे अन्दर के एहसासों को, जज़्बातों को,  कुछ इशारे तो पढ़ लो, सुनो ना कुछ अनकही बातों को। भर लो मुझे अपने आगोश में, जकड़ लो कसकर, कि मिट जाये ये बेचैनी, लौट आये सुकून - बस पल भर। थक गयी हूँ अपनी हिम्मत दिखाते हुए, अपनी परेशानियाँ खुद से भी छुपाते हुए। कुछ देर के लिए ही सही, कमज़ोर पड़ना चाहती हूँ मैं, ये बोझ कहीं रख देना चाहती हूँ मैं। समझो ना मेरे अन्दर के एहसासों को, जज़्बातों को,  कुछ इशारे तो पढ़ लो, सुनो ना कुछ अनकही बातों को।

कर्मयोगी

नहीं है तुझमें कोई विषाद, नहीं किया तूने कोई अपराध। फिर क्यूँ तू घबराता है, धीरज सा खोता जाता है।  क्या तुझको समझ नहीं आता है, या तू देखना ही नहीं चाहता है? समय बड़ा बलवान है, काल सा कौन महान है! सारे फल समय के अधीन हैं, हम मात्र कर्मों पर ही आसीन हैं।  कर्म किया है तो कुछ फल निश्चित है, फल तो कर्मों पर ही आश्रित हैं।  तू व्यर्थ में होता चिन्तित है, तू क्या पूर्णतः ही विशवासरहित है?  समय तो तेरे हाथ नहीं, भाग्य कभी तो है पर कभी साथ नहीं,  पर डरने वाली कोई बात नहीं, कर्म निष्ठा से बड़ी कोई जात नहीं  अरे! बनना है तो कर्मयोगी बन, कर्म कर - ना कर खाली वचन!  कर्मों से बड़ा ना कोई धन, मनुज का मात्र कर्म पर ही नियंत्रण!  कर्मों से ही बड़ा होता है मनुष्य, बादल सकता है वो अपना भविष्य।  भाग्य का लेखा भी होता है नतमस्तक, कार्यशील रहे मनुष्य जब तक।  जब भी मनुज परिणामों से आसक्त हुआ, कर्म छोड़ मात्र फल का भक्त हुआ,  तब ही मोह व भय करते हैं घर, मन का ध्यान भटकते इधर उधर।  सारी युक्तियाँ समझ में आती हैं, सारे पाखण्ड सुहाते हैं,  जब हम परिणाम का ध्यान धर कर कर्मों से जी चुराते हैं।  इसीलिए हे मनुष्य,

करारे थप्पड़

कहते हो जब तुम कोई बात, पहले एक प्यार सा था झलकता पर अब शिकयतों और चिढ़चिढ़ाहट भरा वार है लगता जब मिलकर कियें हैं कुछ फैसले, फ़िर क्यूँ सोचते हो कि हो तुम अकेले जिसके हिस्से में हैं जैसे सारी तकलीफ़ें, परेशानियाँ और झमेले समझ रहा हूँ कि हो परेशान तुम बात कोई बन रही नहीं, रह रहे हो गुमसुम आवाज़ तुम्हारी है पर बोल नहीं तुम्हारे  जो पहुँचाते हैं चोट हमको, ऐसे खामोश़ थप्पड़ करारे

ऐसे ही कभी

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ऐसे ही बैठे बैठे, यूँ ही कभी, जब आंखें नम हो आती हैं सोचती हूँ - कि थक गई हूँ या फिर कुछ दर्द सा उभर रहा है!  किसी ने कुछ कहा भी नहीं, किसी ने कुछ किया भी नहीं -  तब फिर ऐसा क्या है जो जी को यूँ अखर रहा है?  धुंधली धुंधली सी ठेस है शायद, मन की गहरी परतों से झांकती हुयी,  छुपता छुपाता सा वाक्या कोई यादों की दलदल से निकल रहा है।  पूरा किस्सा तो याद नहीं आता अब, पर बात होगी बड़ी ही कोई,  कि आज भी लगता है, जैसे मेरे हाथ से तेरा हाथ फिसल रहा है!  Image credit: https://images.app.goo.gl/5spBHQyjDtaAcZBg6 

Tears

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I am having such an insane desire to cry tonight All the pent up feelings are resurfacing, every single slight Boiling just beneath my eyelids, fighting to be let free My tears await permission to flow noisily or silently The emotional baggage is now turning to an overload All that has been stored inside, for so long, is needing to be told Speaking out, or expressing without words, even through tears  Just so I could rid myself of all these feelings, complexes and fears Why do you increasingly speak with me so derogatingly You just choose the worst time to behave with me disparagingly As if I don't have brains of my own or I am an imbecile I often keep quiet to maintain peace, it's not because I am docile  I don't want to engage in a war of words because I love us so much But my patience is wearing thin, please don't make it further stretch I won't talk anymore or explain anything if I go away from you Because all this while that is probably what you wan