भजन
लाज रखो गिरिधारी मेरी लाज रखो गिरिधारी जो मैं किसी से कह ना पाऊँ तुमसे वो मैं कैसे छुपाऊँ मैं कैसी दुखियारी मेरी लाज रखो गिरिधारी पीड़ा ये कैसे सह जाऊँ अपनी व्यथा क्या मैं पी जाऊँ कहो ना मदन मुरारी मेरी लाज रखो गिरिधारी बड़े सब ही मौन खड़े हैं साथी सब ही मुहँ फेरे हैं बस तुम हो आस हमारी मेरी लाज रखो गिरिधारी दुष्टों को अब दण्डित कर दो इनके मान को खण्डित कर दो सुन लो अरज हमारी मेरी लाज रखो गिरिधारी नित दिन तेरा भजन करूँगी कैसे मिलूँ ये मनन करूँगी ऊँची है तेरी अटारी मेरी लाज रखो गिरिधारी द्वार तुम्हारे आन पड़ी हूँ हाथ जोड़े देखो खड़ी हूँ देर न कर बनवारी मेरी लाज रखो गिरिधारी